मंगलवार, 19 जुलाई 2022

गोवंश में ‘लंपी स्कीन डिजीज ‘ को लेकर पशुपालन विभाग अलर्ट, जारी की एडवाईजरी

रोग के फैलाव को रोकने के लिए स्वस्थ व बीमार पशुधन को तुरंत अलग-अलग करने की पशुपालकों से अपील

बाडमेर, 19 जुलाई। गोवंश में फैले ढेलेदार त्वचा रोग (लंपी स्कीन डिजीज) का खतरा जिले में भी मंडराने लगा है। पशुपालकों ने बचाव को लेकर ध्यान नहीं दिया तो एक-दूसरे मवेशी के संपर्क में आने से फैलने वाली विषाणुजनित यह बीमारी पूरे जिले में फैल सकती है। इससे मवेशियों की दिक्कत तो बढेगी ही, रोग की जद में आने वाले दुधारू मवेशियों के चलते दुग्ध उत्पादन भी प्रभावित होगा जिससे पशुपालकों को आर्थिक क्षति भी उठानी पड़ेगी।
पशुपालन विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. रतनलाल जीनगर ने बताया कि पशुपालन विभाग ने रोग से बचाव के लिए एडवाइजरी जारी की है। हालांकि इस रोग में पशु मृत्यु दर नगण्य है। पशुपालकों से आग्रह है कि एलएसडी से भयभीत न होकर बताये जा रहे तरीकों से पशुओं का बचाव व उपचार करावें। ढेलेदार त्वचा रोग (लम्पी स्कीन डिजीज-एलएसडी) गौवंश में होने वाला विषाणुजनित संक्रामक रोग है जोकि पॉक्स फेमिली के वायरस जिससे अन्य पशुओं में पॉक्स (माता) रोग होता है।
कैसे फैलता है संक्रमण
ढेलेदार त्वचा रोग गाय एवं भैंस में पॉक्स विषाणु (कैप्रीपॉक्स वायरस) के संक्रमण से होता है। संक्रमण हस्तांतरण विषाणु के वाहक जैसे किलनी, मच्छर एवं मक्खी द्वारा फैलता है। संक्रमित पशु के शरीर पर बैठने वाली किलनी, मच्छर व मवेशी जब स्वस्थ पशु के शरीर पर पहुंचते हैं तो संक्रमण उनके अंदर भी पहुंच जाता है। बीमार पशुओं को एक से दूसरे जगह ले जाने या उसके संपर्क में आने वाले पशु भी संक्रमित हो जाते हैं।
कब फैलता है यह रोग
  इस बीमारी का प्रकोप गर्म एवं आर्द्र नमी वाले मौसम में अधिक होता है। मौजूदा समय में जिस तरह से गर्मी व उमस बढी है। उससे रोग के फैलने का खतरा भी बढ चुका है। हालांकि ठंडी के मौसम में स्वतः इसका प्रभाव कम हो जाता है।
रोग के लक्षण
  त्वचा पर ढेलेदार गांठ की तरह बन जाता है। इसके साथ ही मवेशियों के नाक एवं आंख से पानी निकलने लगता है। शरीर का तापमान बढ जाता है। मवेशी बुखार की जद में आ जाते हैं।
स्वास्थ्य पर असर
बीमारी से ग्रसित मवेशी के शरीर पर पड़ने वाले गांठ जब तक कड़े रहते हैं तो जकडन व दर्द बना रहता है। पककर फूटने के बाद शरीर में घाव बन जाता है। जिसमें मक्खियां आदि बैठती हो तो कीड़े तक पड़ जाते हैं। घाव व बुखार से पशु कमजोर हो जाते हैं। इससे दुग्ध उत्पादन भी प्रभावित होता है।
कैसे करें नियंत्रण व बचाव
संक्रमित पशु को एक जगह बांधकर रखें। उन्हें स्वस्थ पशुओं के संपर्क में न आने दें। स्वस्थ पशुओं का गोटपोक्स टीकाकरण करवाएं तथा बीमार पशुओं को बुखार एवं दर्द की दवा तथा लक्षण अनुसार उपचार करें।
जूनोटिक रोग (पशु से मानव में संक्रमण) नहीं हैं एलएसडी
वायरसजनित यह रोग जूनोटिक डिजीज की श्रेणी में नहीं आता हैं, लिहाजा पशुपालक इससे अकारण भयभीत नहीं हो। बीमार गाय के गर्म दूध के सेवन से इंसानों में इसका कोई प्रतिकूल असर अब तक सामनें नहीं आया हैं। सोशल मीडिया पर चल रही इस रोग की भ्रान्तियों से पशुपालक सतर्क रहें।
     उन्होने बताया कि जिले में एलएसडी रोग का संक्रमण हो रहा है। जिले में अब तक सिणधरी क्षेत्र की कामधेनू गौशाला में इसकी पुष्टि हुई हैं। शिव व गडरारोड ब्लॅाक क्षेत्र सहित जिले के कुछ गांवों में रोग से मिलते-जुलते लक्षणों से ग्रसित मवेशी पाए गए हैं। ऐसे में पशुपालकों को बेहद सावधानी बरतने की जरूरत है। संक्रमित पशुओं को दूसरे पशु से दूर रखें। लक्षण दिखने पर निकटतम  पशु चिकित्सकों से सलाह मशविरा कर उपचार कराएं। जिला कलेक्टर के निर्देशानुसार रोग नियंत्रण के लिए जिला मुख्यालय पर कंट़ªोल रूम स्थापित कर जिले के सभी ब्लॉक स्तरीय नोडल अधिकारियों को भी रोग नियंत्रण के लिए क्षेत्र में सर्वे व प्रभावित गांवों में शिविर लगाकर समुचित उपचार व्यवस्था करने के दिशा-निर्देश दिए हैं। पशुपालको से अपील हैं कि रोग नियंत्रण के लिए जारी एडवाईजरी की पालना करें, ताकि अधिकाधिक मवेशियों को रोग ग्रस्त होने से बचाया जा सके।
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