बुधवार, 11 अक्तूबर 2017

लैंगिक उत्पीड़न की रोकथाम के लिए जागरूकता जरूरी : नकाते

                बाड़मेर, 11 अक्टूबर। महिलाआंे की कार्यस्थल पर होने वाली लैंगिक उत्पीड़न की रोकथाम के लिए जागरूकता बेहद जरूरी है। बड़े शहरांे मंे इसको लेकर खासी जागरूकता आई है, लेकिन छोटे शहरांे मंे इस दिशा मंे वृहद स्तर पर कार्य किए जाने की जरूरत है। जिला कलक्टर शिवप्रसाद मदन नकाते ने जिला परिषद सभागार मंे महिलाआंे का कार्यस्थल पर लैगिंक उत्पीड़न निवारण, प्रतिषेध एवं प्रतितोष अधिनियम संबंधित एक दिवसीय कार्यशाला मंे संबोधित करते हुए यह बात कही। इस कार्यशाला का आयोजन महिला अधिकारिता विभाग की ओर से पीएलडी के सहयोग से किया गया।
                जिला कलक्टर शिवप्रसाद मदन नकाते ने कहा कि लैगिंक उत्पीड़न की रोकथाम के लिए जिला एवं ब्लाक स्तर पर कमेटियांे के गठन के साथ इसकी नियमित रूप से बैठकांे का आयोजन किया जाए। समिति के समक्ष इस तरह के मामले आने पर तत्काल निस्तारण करने का प्रयास किया जाए। उन्हांेने कहा कि किसी भी रूप मंे लैंगिक उत्पीड़न नहीं होना चाहिए। कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न, लैंगिक समानता, जीवन और स्वतंत्रता को लेकर महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन है। इससे महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण और उनके समावेशी विकास पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

                इस दौरान महिला अधिकारिता विभाग के सहायक निदेशक प्रहलादसिंह राजपुरोहित ने कहा कि यह अधिनियम, महिलाओं के समानता के मौलिक अधिकारों की पुष्टि करता है। इसके तहत उन्हें पूरी गरिमा और अधिकार के साथ समाज में रहने, किसी व्यवसाय, व्यापार या कार्य को करने की स्वतंत्रता है, जिसमें भारतीय संविधान के अनुसार, कार्य स्थल का वातावरण पूरी तरह सुरक्षित और यौन शोषण रहित होना भी शामिल है। उन्हांेने कहा कि प्रत्येक नियोक्ता एवं मालिक का यह मुख्य कर्तव्य है कि कार्यस्थल पर यौन शोषणरहित माहौल प्रदान करें। साथ ही हर व्यक्ति को इस अधिनियम के बारे में जागरूक करें और इसके लिए आवश्यक कार्यशालाओं का आयोजन करें। महिलाओं को लैंगिक समानता और भयरहित माहौल प्रदान करें। इस दौरान पीएलडी की प्रतिनिधि रचना शर्मा ने कहा कि हर महिला को लैंगिक समानता का अधिकार है। महिलाएं, चाहे सरकारी क्षेत्र में कार्यरत हो या निजी क्षेत्र में यह अधिनियम उनके हित के लिए हर क्षेत्र में सरकार की ओर से लागू किया जाता है। यहां तक कि घरों में काम करने वाली बाईयों या कर्मियों के लिए भी यह नियम है। यह अधिनियम, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को एक व्यापक तरीके से परिभाषित करता है और यदि किसी संस्थान में 10 से अधिक यौन उत्पीड़न की शिकायतें मिलती हैं तो आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) के गठन पर जोर देती है। उन्हांेने कहा कि यौन उत्पीड़न की शिकायत को कृत्य होने के तीन महीने के भीतर कर देना चाहिए। उन्हांेने कहा कि सभी कार्यालयांे मंे महिला कर्मचारियों को इस बारे में जागरूक किया जाए। उन्हांेने बताया कि इस अधिनियम के अनुसार, राज्य सरकारों व विभागों की जिम्मेदारी है कि वे ध्यान दें कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए इस अधिनियम को वे सही से लागू कर रहे हैं या नहीं। यह सुनिश्चित किया जाता है कि सभी विभाग, महिलाओं को कार्यस्थल पर सुरक्षित वातावरण देने में सक्षम हैं या नहीं। उन्हांेने कहा कि यह अधिनियम, यौन उत्पीड़न के सम्बंध में कार्यस्थलों और रिकॉर्ड्स के निरीक्षणों को करने के लिए समुचित सरकार को अधिकृत करता है। अधिनियम की धारा 26(1) में कहा गया है कि इस अधिनियम के तहत नियोक्ता, अपने कर्तव्यों के उल्लंघन में पाये जाने की स्थिति में 50 हजार का जुर्माना देने के लिए उत्तरदायी होगा। कार्यशाला के दौरान जिला कोषाधिकारी दिनेश बारहठ, पुलिस उप अधीक्षक रतनलाल, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के सहायक निदेशक सुरेन्द्र पूनिया, श्रीमती शौभा गौड़ समेत विभिन्न विभागीय अधिकारी एवं विभिन्न संगठनांे के प्रतिनिधि उपस्थित रहे।



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